Best Collection Of Moral Stories For Kids In Hindi : नींद की कहानियाँ एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं बच्चों की परवरिश और उनकी मनोहारी दुनिया में संतुष्टि के लिए। ये कहानियाँ रात के समय बच्चों को सुलाने के लिए सुनाई जाती हैं और उनके सपनों में चमत्कारिक रूप से जीवित हो जाती हैं।
Moral Stories In Hindi : बच्चे कहानी सुनना और पढ़ना बहोत अच्छा लगता है। नैतिक कहानियां, डरावनी नी कहानियां, बच्चों के लिए मज़ेदार कहानियाँ, सुपर हीरो की कहानियां, रात को सोने से पहले सुननेवाली कहानियां, छोटे बच्चो की कहानियां ओर भी कई तरह की कहानियां होती है। जो बच्चो को अच्छी लगती है।
Best Collection Of Moral Stories For Kids In Hindi | बच्चों के लिए हिंदी में नैतिक कहानियों का सर्वश्रेष्ठ संग्रह
short moral stories in hindi : हमारे जीवन के शांत कोनों में, नैतिक गहराई और मानवीय लचीलेपन की कहानियाँ अक्सर सामने आती हैं। जीवन के जटिल धागों के माध्यम से, एक ऐसी कहानी सामने आती है – एक मार्मिक कथा जो मानवता के धड़कते दिल से गूंजती है।
यह सामना किए गए परीक्षणों, चुने गए विकल्पों और उस अटूट भावना की बात करता है जो कठिन रास्तों पर हमारा मार्गदर्शन करती है। यह कहानी हम सभी के भीतर करुणा, लचीलेपन और स्थायी प्रकाश की शक्ति का प्रमाण है। यह एक अनुस्मारक है कि जीवन के परीक्षणों के बीच, हमारी मानवता का सार, सीखने और बढ़ने की हमारी क्षमता सबसे अधिक चमकती है। यह एक ऐसी कहानी है जो उन सार्वभौमिक सत्यों को प्रतिध्वनित करती है जिन्हें हम अपने दिलों के करीब रखते हैं।
1. तीन मछलियों की नैतिक कहानी | Short Moral Stories In Hindi
एक नदी के किनारे उसी नदी से जुडा एक बडा जलाशय था। जलाशय में पानी गहरा होता हैं, इसलिए उसमें काई तथा मछलियों का प्रिय भोजन जलीय सूक्ष्म पौधे उगते हैं। ऐसे स्थान मछलियों को बहुत रास आते हैं। उस जलाशय में भी नदी से बहुत-सी मछलियां आकर रहती थी। अंडे देने के लिए तो सभी मछलियां उस जलाशय में आती थी। वह जलाशय लम्बी घास व झाडियों द्वारा घिरा होने के कारण आसानी से नजर नहीं आता था।
उसी मे तीन मछलियों का झुंड रहता था। उनके स्वभाव भिन्न थे। अन्ना संकट आने के लक्षण मिलते ही संकट टालने का उपाय करने में विश्वास रखती थी। प्रत्यु कहती थी कि संकट आने पर ही उससे बचने का यत्न करो। यद्दी का सोचना था कि संकट को टालने या उससे बचने की बात बेकार हैं करने कराने से कुछ नहीं होता जो किस्मत में लिखा है, वह होकर रहेगा।
एक दिन शाम को मछुआरे नदी में मछलियां पकडकर घर जा रहे थे। बहुत कम मछलियां उनके जालों में फंसी थी। अतः उनके चेहरे उदास थे। तभी उन्हें झाडियों के ऊपर मछलीखोर पक्षियों का झुंड जाता दिकाई दिया। सबकी चोंच में मछलियां दबी थी। वे चौंके ।
एक ने अनुमान लगाया “दोस्तो! लगता हैं झाडियों के पीछे नदी से जुडा जलाशय हैं, जहां इतनी सारी मछलियां पल रही हैं।”
मछुआरे पुलकित होकर झाडियों में से होकर जलाशय के तट पर आ निकले और ललचाई नजर से मछलियों को देखने लगे।
एक मछुआरा बोला “अहा! इस जलाशय में तो मछलियां भरी पडी हैं। आज तक हमें इसका पता ही नहीं लगा।” “यहां हमें ढेर सारी मछलियां मिलेंगी।” दूसरा बोला।
तीसरे ने कहा “आज तो शाम घिरने वाली हैं। कल सुबह ही आकर यहां जाल डालेंगे।”
इस प्रकार मछुआरे दूसरे दिन का कार्यक्रम तय करके चले गए। तीनों मछ्लियों ने मछुआरे की बात सुन ला थी।
अन्ना मछली ने कहा “साथियो! तुमने मछुआरे की बात सुन ली। अब हमारा यहां रहना खतरे से खाली नहीं हैं। खतरे की सूचना हमें मिल गई हैं। समय रहते अपनी जान बचाने का उपाय करना चाहिए। मैं तो अभी ही इस जलाशय को छोडकर नहर के रास्ते नदी में जा रही हूं। उसके बाद मछुआरे सुबह आएं, जाल फेंके, मेरी बला से। तब तक मैं तो बहुत दूर अटखेलियां कर रही हो-ऊंगी।’
प्रत्यु मछली बोली “तुम्हें जाना हैं तो जाओ, मैं तो नहीं आ रही। अभी खतरा आया कहां हैं, जो इतना घबराने की जरुरत हैं हो सकता है संकट आए ही न। उन मछुआरों का यहां आने का कार्यक्रम रद्द हो सकता है, हो सकता हैं रात को उनके जाल चूहे कुतर जाएं, हो सकता है।
उनकी बस्ती में आग लग जाए। भूचाल आकर उनके गांव को नष्ट कर सकता हैं या रात को मूसलाधार वर्षा आ सकती हैं और बाढ में उनका गांव बह सकता हैं। इसलिए उनका आना निश्चित नहीं हैं। जब वह आएंगे, तब की तब सोचेंगे। हो सकता हैं मैं उनके जाल में ही न फंसूं।”
यद्दी ने अपनी भाग्यवादी बात कही “भागने से कुछ नहीं होने का। मछुआरों को आना हैं तो वह आएंगे। हमें जाल में फंसना हैं तो हम फंसेंगे। किस्मत में मरना ही लिखा हैं तो क्या किया जा सकता हैं?”
इस प्रकार अन्ना तो उसी समय वहां से चली गई। प्रत्यु और यद्दी जलाशय में ही रही। भोर हुई तो मछुआरे अपने जाल को लेकर आए और लगे जलाशय में जाल फेंकने और मछलियां पकडने । प्रत्यु ने संकट को आए देखा तो लगी जान बचाने के उपाय सोचने ।
उसका दिमाग तेजी से काम करने लगा। आस-पास छिपने के लिए कोई खोखली जगह भी नहीं थी। तभी उसे याद आया कि उस जलाशय में काफी दिनों से एक मरे हुए ऊदबिलाव की लाश तैरती रही हैं। वह उसके बचाव के काम आ सकती हैं।
जल्दी ही उसे वह लाश मिल गई। लाश सडने लगी थी। प्रत्यु लाश के पेट में घुस गई और सडती लाश की सडांध अपने ऊपर लपेटकर बाहर निकली। कुछ ही देर में मछुआरे के जाल में प्रत्यु फंस गई।
मछुआरे ने अपना जाल खींचा और मछलियों को किनारे पर जाल से उलट दिया। बाकी मछलियां तो तडपने लगीं, परन्तु प्रत्यु दम साधकर मरी हुई मछली की तरह पडी रही। मचुआरे को सडांध का भभका लगा तो मछलियों को देखने लगा।
उसने निश्चल पडी प्रत्यु को उठाया और सूंघा “आक! यह तो कई दिनों की मरी मछली हैं। सड चुकी हैं।” ऐसे बडबडाकर बुरा-सा मुंह बनाकर उस मछुआरे ने प्रत्यु को जलाशय में फेंक दिया।
प्रत्यु अपनी बुद्धि का प्रयोग कर संकट से बच निकलने में सफल हो गई थी। पानी में गिरते ही उसने गोता लगाया और सुरक्षित गहराई में पहुंचकर जान की खैर मनाई।
यद्दी भी दूसरे मछुआरे के जाल में फंस गई थी और एक टोकरे में डाल दी गई थी। भाग्य के भरोसे बैठी रहने वाली यद्दी ने उसी टोकरी में अन्य मछलियों की तरह तडप-तडपकर प्राण त्याग दिए।
सीखः भाग्य के भरोसे हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहने वाले का विनाश निश्चित हैं।
2. एक महेनती हिरण की कहानी | Moral Stories In Hindi
कभी बहुत समय पहले, एक जंगल में मेहनती और परिश्रमी हिरण रहता था । वह हमेशा समय गुजारता था जंगल के हर कोने को छानते हुए और सभी जानवरों की मदद करता था । वह एक बहुत ही ईमानदार और निष्ठावान हिरण था ।
एक दिन, जंगल में भयानक एक शेर आया । यह शेर अत्यंत भयानक और क्रूर था । वह जंगल में डर और हाहाकार फैलाता था । जब जंगल में अचानक अत्यंत शोर- शराबा मच गया, तो सभी जानवर चिंतित हो गए । जंगली शेर जानवरों को डराने आया था ।
हर कोई डर के मारे अपने- अपने घरों में छिप गया । इस शोर को सुनकर हिरण भी डरकर भागने की कोशिश करता हुआ जंगल में भाग गया । शेर ने जंगल के सभी जानवरों को धमकाकर बताया कि अब वह जंगल का राजा है और सभी को अपनी शरण में आना होगा ।
हिरण ने भी इसे सुना और शेर की दहाड़ सुनकर वह बहुत चिंतित हुआ । वह सोचने लगा कि शेर अब जंगल में सभी का आतंक बन गया है ।
हिरन ने सभी जानवरों के साथ मिलकर शेर को हराने की और उस से छुटकारा पाने की योजना बनाई, उन्होंने शेर को सबक सिखाने का निर्णय लिया । हिरन के साथ सभी जानवरों ने मिलकर काम शुरू किया ।
मेहनती हिरण ने तत्परता और साहस से भरपूर होकर शेर के खिलाफ लड़ने का निर्णय किया । वह अपनी मेहनत और समझदारी से शेर को हराने की कोशिश करने के लिए तैयार था । दिन बीतते गए,
मेहनती हिरन ने खरगोश, चूहे और जमीन में खोदने वाले जानवरो को एक बड़ा गड्ढा खोदने के लिए कहा, सभी ने मिलकर कुछ ही दिनों में एक बहुत बड़ा खड्डा खोद दिया । उस गड्ढे को घांस धक् दिया और शेर के आने का इंतज़ार करने लगे ।
सभी जानवरो को एक साथ देख शेर ने उन पर हमला किया, सभी जानवर इधर उधर भागने लगे, तभी हिरन शेर के सामने आया और उसे अपने पीछे भागने लगा और उसे उस खड्डा के पास ले गया । और आखिरकार शेर उस गड्ढे में जा गिरा और सभी जानवर बहुत खुश हुए ।
और आखिरकार एक दिन, हिरण ने शेर को मात दी! हिरण ने बुद्धिमत्ता से शेर को हरा दिया । जंगल में सुकून और शांति फिर से वापस आ गई । सभी जानवर फिर से खुश और सुरक्षित महसूस करने लगे ।
इस तरह, मेहनती हिरण ने अपनी मेहनत और संघर्ष से सफलता प्राप्त की और जंगल में सबको एक संदेश दिया कि हार नहीं मानना और मेहनत से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है । इसी तरह, हमें भी अपने जीवन में मेहनत और दृढ़ संकल्प के साथ अपने लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयास करना चाहिए । मुश्किलों से नहीं डरना चाहिए, बल्कि उनका सामना करना चाहिए और उन्हें पार करने की क्षमता रखनी चाहिए ।
सिख: कभी- कभी हमें संकट में भी आत्म- संघर्ष करना चाहिए । हमें हार नहीं माननी चाहिए और सच्ची मेहनत और साहस से हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं । इसी मार्गदर्शन के साथ, हमें हमेशा संघर्ष की भावना और प्रतिबद्धता से अपने लक्ष्यों को हासिल करने का प्रयास करना चाहिए ।
3. तेनाली रामा की कहानी ( Short Moral Stories In Hindi )
एक बार राजा कॄष्णदेव राय ने अपने गॄहमंत्री को राज्य में अनेक कुएँ बनाने क आदेश दिया। गर्मियॉ पास आ रही थीं, इसलिए राजा चाहते थे कि कुएँ शीघ्र तैयार हो जाएँ, ताकि लोगो को गर्मियों में थोडी राहत मिल सके।
गॄहमंत्री ने इस कार्य के लिए शाही कोष से बहुत-सा धन लिया। शीघ्र ही राजा के आदेशानुसार नगर में अनेक कुएँ तैयार हो गए। इसके बाद एक दिन राजा ने नगर भ्रमण किया और कुछ कुँओं का स्वयं निरीक्षण किया। अपने आदेश को पूरा होते देख वह संतुष्ट हो गए।
गर्मियों में एक दिन नगर के बाहर से कुछ गॉव वाले तेनाली राम के पास् पहुँचे, वे सभी गॄहमंत्री के विरुध्द शिकायत लेकर आए थे। तेनाली राम ने उनकी शिकायत सुनी और् उन्हें न्याय प्राप्त करने का रास्ता बताया।
तेनाली राम अगले दिन राजा से मिले और बोले, “महाराज! मुझे विजय नगर में कुछ चोरों के होने की सूचना मिली है। वे हमारे कुएँ चुरा रहे हैं।”
इस पर राजा बोले, “क्या बात करते हो, तेनाली! कोई चोर कुएँ को कैसे चुरा सकता है?” “महाराज! यह बात आश्चर्यजनक जरुर है, परन्तु सच है, वे चोर अब तक कई कुएँ चुरा चुके हैं।” तैनाली राम ने बहुत ही भोलेपन से कहा।
उसकी बात को सुनकर दरबार में उपस्थित सभी दरबारी हँसने लगे।
महाराज ने कहा’ “तेनाली राम, तुम्हारी तबियत तो ठीक है। आज कैसी बहकी-बहकी बातें कर रहे हो? तुम्हारी बातों पर कोई भी व्यक्ति विश्वास नहीं कर सकता।”
“महाराज! मैं जानता था कि आप मेरी बात पर विश्वास नही करंगे, इसलिए मैं कुछ गॉव वालों को साथ लाया हूँ। वे सभी बाहर खडे हैं। यदि आपको मुझ पर विश्वास नहीं है, तो आप उन्हें दरबार में बुलाकर पूछ लीजिए। वह आपको सारी बात विस्तारपूर्वक बता दंगे।”
राजा ने बाहर खडे गॉव वालों को दरबार में बुलवाया। एक गॉव वाला बोला, “महाराज! गॄहमंत्री द्वारा बनाए गए सभी कुएँ समाप्त हो गए हैं। आप स्वयं देख सकते हैं।”
राजा ने उनकी बात मान ली और गॄहमंत्री, तेनाली राम, कुछ दरबारियों तथा गॉव वालो के साथ कुओं का निरीक्षण करने के लिए चल दिए।
पूरे नगर का निरीक्षण करने के पश्चात उन्होंने पाया कि राजधानी के आस-पास के अन्य स्थानो तथा गॉवों में कोई कुऑ नहीं है।
राजा को यह पता लगते देख गॄहमंत्री घबरा गया। वास्तव में उसने कुछ कुओ को ही बनाने का आदेश दिया था। बचा हुआ धन उसने अपनी सुख-सुविधओं पर व्यय कर दिया।
अब तक राजा भी तेनाली राम की बात का अर्थ समझ चुके थे। वे गॄहमंत्री पर क्रोधित होने लगे, तभी तेनाली राम बीच में बोल पडा “महाराज! इसमें इनका कोई दोष नहीं है। वास्तव में वे जादुई कुएँ थे, जो बनने के कुछ दिन बाद ही हवा में समाप्त हो गए।”
अपनी बात स्माप्त कर तेनाली राम गॄहमंत्री की ओर देखने लगा। गॄहमंत्री ने अपना सिर शर्म से झुका लिया। राजा ने गॄहमंत्री को बहुत डॉटा तथा उसे सौ और कुएँ बनवाने का आदेश दिया। इस कार्य की सारी जिम्मेदारी तेनाली राम को सौंपी गई।
शिख :- दोस्तों, यदि कोई विश्वास करके आपको कोई काम सौंपता है, तो उस काम के प्रति इमानदार रहे। ताकि किसी का विश्वास आप पर से ना टूटे।
4. ब्राम्हण और केकड़े की कहानी | Hindi Stories For Kids
किसी समय की बात है एक गाँव में एक ब्राम्हण रहता था | उसकी माँ बहुत बूढी हो गई थी | बूढी माँ अपने पुत्र को बहुत प्यार करती थी और ब्राम्हण पुत्र भी अपनी माँ की हर बात मानता था | एक दिन ब्राम्हण को पूजा-पाठ कराने पास के ही दूसरे गाँव जाना था | ब्राम्हण ने यह बात अपनी माँ को बतलाई | बूढी माँ बोली– “ बेटा ! बाहर जा रहे हो अकेले मत जाना | किसी को अपने सांथ ले जाना |”
ब्राम्हण अपनी माँ से बोला – “माँ ! मै हमेशा ही उस गाँव में जाता रहता हूँ और रास्ते में कोई परेशानी नहीं होती | तुम व्यर्थ ही परेशान हो रही हो|घबराओ नहीं मैं शाम तक लौट कर आ जाऊंगा |“
ब्राम्हण पुत्र जाना तो अकेला चाहता था परन्तु वह अपनी माँ की बात की अवहेलना भी नहीं करना चाहता था | वह घर से निकल गया और जैसे ही गाँव से लगी नदी के पास पहुंचा एक केकड़ा उसके पैर के नीचे दबते-दबते बच गया | ब्राम्हण को लगा अगर यह केकड़ा रास्ते में यूँ ही घूमता रहा तो किसी और के पैर के नीचे आ जायेगा | ब्राम्हण को अपनी माँ की बात याद आई कि अकेले मत जाना | ब्राम्हण ने सोचा इस केकड़े को अपने सांथ लिए चलता हूँ | उसने अपनी पोटरी से एक खाली डिबिया निकाली और उस केकड़े को डिबिया में रख लिया | इस प्रकार ब्राम्हण ने अपनी माँ की बात भी रख ली अब वो एक से दो हो गए | ब्राम्हण अपने रास्ते चल दिया |
गर्मी के दिन थे और धूप बहुत तेज थी | चलते चलते ब्राम्हण थक गया तो आराम करने के लिए एक पुराने बड़े पेड़ के नीचे लेट गया | उसे कब नींद लग गई पता ही नहीं चला | उसी पेड़ के कोटर में एक काला सांप रहता था | ब्राम्हण की पोटरी में पूजा-पाठ की सामग्री थी जिससे सुगन्धित पूजन सामग्री की खुशबू आ रही थी | काला सर्प अपने कोटर से निकल कर पोटरी में घुस गया और उसमें रखी सामग्री में खाने की सामग्री ढूँढने लगा जिससे पोटरी में रखा सामान गिर गया और केकड़े की डिबिया भी खुल गई | सांप जैसे ही केकड़े को खाने के लिए आगे बढ़ा केकड़े ने अपने नुकीले डंक सांप की गर्दन में फंसा कर गड़ा दिये | केकड़े के द्वारा अचानक किये हमले से सांप संभल नहीं पाया और वहीँ मर गया |
कुछ देर बाद जब ब्राम्हण की नींद खुली तो उसने अपने आस-पास सामान बिखरा पाया और पास में ही उसे मृत सांप दिखलाई दिया जिसकी गर्दन ने डंक के निशान थे और पास में ही केकड़ा घूम रहा था |
ब्राम्हण समझ गया की इस सांप को केकड़े ने मारा है और केकड़े के कारण आज उसकी जान बच गई | तभी उसे अपनी माँ की बता याद आई कि कहीं अकेले मत जाना | ब्राम्हण ने अपनी जान बचाने के लिए केकड़े का धन्यवाद दिया और वापस जाते समय नदी के पास छोड़ दिया |
शिक्षा – ब्राम्हण और केकड़े की कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि हमेशा अपने माता-पिता की बात माननी चाहिए |
5. राजकुमारी , राक्षस, चोर और बन्दर की कहानी | Bedtime Stories For Kids In Hindi
बहुत पुरानी बात है एक राज्य में रत्नसेन नामक राजा राज्य करता था। राजा का राज्य दूर-दूर तक फैला था और उसकी प्रजा भी बहुत सुखी थी। राजा की एक पुत्री थी | राजकुमारी को हमेशा एक डर सताता था कि कोई शाकाल नाम का राक्षस उसका अपहरण कर लेगा। राजकुमारी के इस डर के कारण राजा ने राजकुमारी के महल में सैनिकों का बहुत बड़ा पहरा लगा दिया। एक दिन की बात है एक राक्षस छुपता-छुपाता राजकुमारी के कक्ष में पहुंच गया और एक कोने में दुबक कर बैठ कर राजकुमारी की बात सुनने लगा।
राजकुमारी अपनी सहेली से कह रही थी- ” यह दुष्ट शाकाल मुझे बहुत परेशान करता है । इसका कुछ ना कुछ इलाज करना जरूरी है।”
राजकुमारी की बात सुनकर महल में छुपा राक्षस समझ गया कि राजकुमारी किसी बड़े दैत्य या राक्षस की बात कर रही है। शायद यह राक्षस उससे भी बड़ा है । किसी ना किसी तरह इस राक्षस की शक्ति के बारे में जानकारी लेना चाहिए। इतना सोच कर वह राक्षस घोड़े का रूप धारण कर अश्वशाला में जाकर छुप गया।
उसी रात एक चोर घोड़ा चुराने की नियत से अश्वशाला में घुस आया। चोर ने अश्वशाला में सभी घोड़ों का निरीक्षण किया। सभी घोड़ों में उसे अश्वरूपी राक्षस ही सबसे हट्टा-कट्टा और सुंदर दिखलाई दिया। वह घोड़े को चोरी करने की नियत से उसकी पीठ पर चढ़ गया और उसकी लगाम अपने हाथ में ले ली। अश्वरूपी राक्षस समझा कि यह अवश्य ही शाकाल राक्षस है जो मेरी हत्या करने की नियत से मेरी पीठ पर चढ़ गया है।
अश्वरूपी राक्षस ने अपना रूप बदलने की कोशिश की किंतु उसकी लगाम चोर के हाथ में होने के कारण वह अपना रूप नहीं बदल सका। चोर के हाथ से चाबुक खाते ही अश्वरूपी राक्षस दौड़ने लगा। कुछ दूर जाने पर चोर ने राक्षस की लगाम खींचकर उसे रोकना चाहा किंतु वह नहीं रुका और दौड़ता ही गया। चोर को शंका हुई कि यह घोड़ा नहीं अवश्य कोई राक्षस है जो मुझे मारने के लिए आगे ले जा रहा है। यह आगे जाकर अवश्य मुझे गिरा देगा और मार कर खा जाएगा।
अश्वरूपी राक्षस दौड़ते-दौड़ते एक विशाल वृक्ष के नीचे से गुजरा । चोर उस वृक्ष की शाखा पकड़कर लटक गया और अश्वरूपी राक्षस पेड़ के नीचे से गुजर गया। जिस वृक्ष की शाखा पर चोर था उसके ऊपर की ही शाखा पर एक बंदर बैठा हुआ था । बंदर अश्वरुपी राक्षस का मित्र था । अपने मित्र को इस तरह भागता देख बन्दर ने उसे आवाज लगाई – ” मित्र यह कोई राक्षस नहीं अपितु एक साधारण सा चोर है तुम चाहो तो इसे कुछ क्षण में मार कर खा सकते हो।”
बंदर की इस तरह की बातों से चोर को बहुत गुस्सा आ रहा था। जब बंदर इस तरह की बातें कर रहा था तो उसकी पूँछ नीचे लटक रही थी जो चोर के मुंह तक आ रही थी। चोर ने गुस्से में बंदर की पूंछ को अपने मुंह में दवा कर उसे चबाना शुरु कर दिया। बंदर को दर्द तो बहुत हो रहा था किंतु अपने मित्र राक्षस के सामने चोर की शक्ति को कम दर्शाने के लिए बहुत चुपचाप वहीं बैठा रहा किंतु बंदर के चेहरे से उसकी पीड़ा स्पष्ट दिखाई दे रही थी।
बंदर की यह हालत देखकर उसका मित्र राक्षस उसके समीप आया और बोला- ” मित्र तुम कुछ भी कहो लेकिन तुम्हारे चेहरे के हाव भाव स्पष्ट बतला रहे हैं की इस भयानक शाकाल राक्षस से तुम्हें बहुत डर लग रहा है।” इतना कहकर अश्वरूपी राक्षस वहां से भाग गया।
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